शरद ऋतु और माघ मास,
जीवन के लिये है ख़ास।
बाबा जी जला दिए
सुबह-सवेरे अलाव,
आँच तापने आते लोग
घेरे का होता जाता फैलाव।
कोहरे में चलते-चलते
लोग हो जाते अदृश्य,
प्रकृति के हैं बड़े
अजीब-सजीव रहस्य।
कोई उठता पशुओं को देने चारा
कोई करने उठता सफ़ाई,
कोई उठता पानी भरने
कोई करता दूध-दुहाई।
क़िस्से चलते रहते
अलाव पर,
हाथ सेंककर बढ़ जाते लोग
अगले पड़ाव पर।
खेतों से आती
फूली सरसों की ख़ुशबू,
बैलों के गले में
बजती घंटियाँ टुनक-टू।
तैयार हो आयी
अलाव पर नन्हीं मुनिया,
मुँह से धुआँ फूकती
चली स्कूली-दुनिया।
@रक्षा सिंह "ज्योति"