सोमवार, 15 जनवरी 2018

अलाव


शरद ऋतु और माघ मास, 

जीवन के लिये  है  ख़ास।  

बाबा जी जला दिए 

सुबह-सवेरे अलाव, 

आँच तापने आते लोग 

घेरे का होता जाता फैलाव। 

कोहरे में चलते-चलते 

लोग हो जाते अदृश्य, 

प्रकृति के हैं बड़े 

अजीब-सजीव रहस्य।  

कोई उठता पशुओं को देने चारा   

कोई करने उठता सफ़ाई, 

कोई उठता पानी भरने 

कोई करता दूध-दुहाई।  

क़िस्से चलते रहते 

अलाव पर, 

हाथ सेंककर बढ़ जाते लोग 

अगले पड़ाव पर।  

खेतों से आती 

फूली सरसों की ख़ुशबू, 

बैलों के गले में 

बजती घंटियाँ टुनक-टू। 

तैयार हो आयी 

अलाव पर नन्हीं मुनिया,

मुँह से धुआँ फूकती 

चली स्कूली-दुनिया। 

@रक्षा सिंह "ज्योति" 


सादर नमस्कार

सादर नमस्कार।
आज नया ब्लॉग आरम्भ कर रही हूँ। 
पहले ब्लॉग "हिन्दी-अनुभूति और स्पंदन" पर तकनीकी समस्या के चलते पोस्ट प्रकाशित नहीं हो पा रही है। 
हिन्दी-अनुभूति और स्पंदन की दोनों रचनाओं के लिंक इस प्रकार हैं -

https://hindianubhootiaurspandan.blogspot.in/2016/12/blog-post.html  


नव वर्ष



https://hindianubhootiaurspandan.blogspot.in/2017/12/blog-post.html
इंसान हूँ मैं ....

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